शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......



बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......
आसमां की किस हद को छू पायेगा तू....
आदमी के जाल से कब तक बच पायेगा तू.....
बोल रे परिंदे....कहाँ जाएगा तू....

तेरे घर तो अब दूर होने लगे हैं तुझसे 
शहर के बसेरे तो खोने लगे हैं तुझसे 
अब तो लोगों की जूठन भर ही खा पायेगा तू 
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

दिन भर चिचियाने की आवाजें आती थी सबको 
मीठी-मीठी बोली हर क्षण लुभाती थी सबको 
आदमी का संग-साथ कब भूल पायेगा तू....
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

बस थोड़े से दिन हैं तेरे,अब वो भी गिन ले तू 
चंद साँसे बस बची हैं,जी भरके उनको चुन ले तू.
फिर वापस इस धरती पर नहीं आ पायेगा तू....
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

प्रगति......


प्रगति आतंक की जननी है 
खून तो मानो आतंक है 
पर प्रगति तो धमनी है 
प्रगति ने किया बंदूकों का आविष्कार 
इंसानों ने किया अपनों का ही शिकार 
प्रगति ने ही किया परमाणु अस्त्रों का आविष्कार  
जल गया हिरोशिमा नागासाकी जिसका न कोई आधार 
प्रगति अभी खोज रही थी कैंसर का उपचार 
लो आ गया नया एड्स का भरा पूरा परिवार 
प्रगति ने ही किया है वकील अदालतों का आविष्कार 
बोफोर्स, हवाला चारा करके भी बच गई सरकार 
प्रगति का सबसे बड़ा आविष्कार तो है नोटों की लम्बी तलवार 
जिससे काटो तो ना निकले खून और बचे कातिल हर बार..... 


बुधवार, 21 सितंबर 2011

जो तेरा है वो तेरा तो नहीं है....!!




जो तेरा है वो तेरा तो नहीं है,
जो मेरा है वो मेरा तो नहीं है !
जो जितना अच्छा दिखता है 
देखो,वो उतना भला तो नहीं है!
ठीक है,वो चारागर होगा मगर 
बस इतने से वो खुदा तो नहीं है !
नजदीक से देखने से लगता है,
कहीं वो मुझसे जुदा तो नहीं है !
रह-रह कर कुछ टीसता-सा है ,
कहीं मुझको कुछ हुआ तो नहीं है !
कुछ जो भी यहाँ पर गहरा-सा है,
कभी हर्फों में वो बयाँ तो नहीं है !
हर जगह वो मुझसे छुपता है 
कहीं वो मेरा राजदां तो नहीं है !
हर पल बस तेरा नाम लेता हूँ,
ओ मेरे खुदा रे कहाँ तू नहीं है !
हर हद तक जाकर तुझको खोजा 
कहीं तू मेरे दरमियाँ तो नहीं है !
हर्फों का शोर ये समझ ना आये 
कहीं तू हर्फों में ही निहां तो नहीं है !!